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एक नहीं, कई पन्नों की कहानी है दस्तावेज

नया कॉन्सेप्ट, अच्छा प्रयास लेकिन दर्शक निराश

रेटिंग 2.5/5

सिनेमा 36. इस हफ्ते आई सीजी फिल्म ‘दस्तावेज: कहानी एक पन्ने की’ सही मायने में कई पन्ने की कहानी है। क्योंकि एक पन्ना खत्म होने पर दूसरा पन्ना शुरू होता है। ऐसा खुद डायरेक्टर सनी सिन्हा मानते हैं। फिल्म के प्लॉट की बात करें तो नगर पंचायत के कार्यालय में फिल्म फाइल की तरह आगे बढ़ती है लेकिन बहुत लड़खड़ाते गए, इतनी कि आप मध्यांतर का इंतजार करने लग जाएं।

देखा जाए तो कहानी को समझने में काफी वक्त लग जाता है। अनिल सिन्हा नगर पंचायत कर्मचारी है। उसकी मुलाकात सुमन पटनायक से होती है जब सुमन किसी कागजात के लिए दफ्तर आती है। सुमन को पता चलता है कि उसके पिता का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनाया गया है। बाद में पता चलता है कि सुमन के चाचा की चाल थी, वे भाई की जमीन हड़पने के लिए ऐसा करना चाहते थे। कहानी में एक और युवा शशांक और उसके सपनों को बुनने की कोशिश की गई है जो सुपर स्टार बनना चाहता है। कहानी में एक बेटा अपनी मां में लीडर देखता है और वह उसे नेता बनाने में कामयाब हो जाता है।

गीत संगीत/ संवाद/ बीजीएम

गीत संगीत बढ़िया है। हर एक गाना सिचुएशन से तालमेल बैठाता हुआ नजर आता है। हृदय के बात..पहले ही चल चुका था। बाकी गाने भी अच्छे हैं। चेतन देवांगन की पंडवानी काफी अच्छी बन पड़ी है। संवाद अच्छे लिखे गए हैं। जो नएपन का अहसास दिलाते हैं। बीजीएम ठीक है।

अभिनय

अनिल सिन्हा पहली बार सोलो लीड में नजर आए हैं। उनके अभिनय को सराहा गया। शशांक की एक्टिंग थोड़ी ओवर लगी, लेकिन सेड सिचुएशन में उनके अभिनय में निखार देखा गया। अनिल की मां का रोल कर रही उनकी रियल मम्मी ने बहुत ही सधी हुई एक्टिंग की है। कह सकते हैं इंडस्ट्री को एक और मां मिल गई। सुमन पटनायक का अभिनय नपा तुला रहा। आलोक ने अपनी आंखों के बड़े होने का जरूरत से ज्यादा उपयोग किया है। अन्य किरदार का काम भी ठीक है।

निर्देशन/स्क्रीनप्ले/ सिनेमेटोग्राफी/ लोकेशन

सीजी फिल्म में सनी सिन्हा का पहला निर्देशन है। उन्होंने सिनेमाई लिबर्टी बहुत ली है। फिल्म का पहला हिस्सा कहीं कहीं बोर करता है कि फिल्म जा कहां रही है। स्क्रीनप्ले औसत है, जबकि कहीं कहीं कमजोर भी। इंटरवल के आगे जाने पर फिल्म बांधती हुई नजर आती है, जो आखिर तक बांधे रखती है। सिनेमेटोग्राफी में जैसा नाम सुक्खी का सुना जाता है, काम वैसा नजर नहीं आया। लोकेशन सही शॉट हैं।

कमियां

फिल्म में कई कमियां हैं। कई ऐसी बातें हैं जो हजम नहीं होती। देश में रिश्वतखोरी आज भी कायम है लेकिन खुलेआम नहीं। आज भी रिश्वत मांगने का अंदाज मांगना नहीं बल्कि जताना होता है। लेकिन फिल्म में इसे सीधा दिखा दिया गया है। गोपी नामक किरदार इतना कमजोर था कि उसने डर से आत्महत्या कर ली। वो चाहता तो पूरी कहानी अनिल को बता देता और फिर चुनाव आयोग तक शिकायत की जा सकती थी। कहानी को इमोशनल कलर देने के लिए वैसा किया गया था। इंटर तक फिल्म कनेक्ट नहीं हो पाती। वैसे सुमन के चाचा को सुमन से ही देते सर्टिफिकेट मांग लेना था, लेकिन ऐसा होता तो फिल्म कैसे बनती। खैर अगर हम सभी लीक प्वाइंट को सिनेमा लिबर्टी मान भी लें तो हाथ कुछ खास नहीं आता।

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