सिल्वर स्क्रीन पर जीवंत हुई मां कर्मा की कहानी
संस्कारों से जोड़ती है मेरी मां कर्मा
Cinema 36.पॉपकॉर्न प्रोडक्शन की फिल्म मेरी मां कर्मा एक ऐसी फिल्म जिसमें कहानी के भीतर कहानी चलती है। देखने में लगता है कि कोई कमर्शियल हिंदी फिल्म है और आप उससे कनेक्ट हो चले हैं।
कहानी शुरू होती है एक गर्भवती ( देबसमिता पंडा) से जिसे सुबह सुबह मैगी खाने का मन कर रहा है। सोए हुए पति (हिमांशु यादव) को उठाकर मैगी बनाने कहती है। फिल्म में एक नॉर्मल फैमिली है जिसमें सास बहू, पिता पुत्र हैं। सास की रोक टोक बहु को नागवार गुजरती है, लेकिन जब सास के जरिए वो माता कर्मा की कहानी जानने लगती है तो उसमें बदलाव आने लगता है।
फिल्म में हास्य व्यंग्य के जबरदस्त पंच सुनने को मिलते हैं। पति पत्नी की नोकझोंक को भी अच्छे से दर्शाया गया है। कर्मा ( कुकीज स्वेन) के माता पिता भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त हैं और यह भक्ति कर्मा को भी विरासत में मिलती है। कर्मा बड़ी होती है और उसकी शादी गुणी युवा ( शील वर्मा) से हो जाती है। कर्मा का संघर्ष शुरू होता है और फिर लोग उन्हें मां कर्मा कहने लगते हैं।
स्क्रिप्ट/ अभिनय/ डायलॉग/ बीजीएम/ कैमरा
स्क्रिप्ट को अच्छे तरीके से गूंथा गया है जिसे लगभग डेढ़ घंटे तक परोसा गया है। अभिनय के मामले में कोई किसी से कम नहीं हैं। सोनमछरी फेम हिमांशु अच्छे जमे हैं। वैसे भी कास्टिंग अच्छी हुई है। भाभी जी घर पर हैं के सक्सेना जी ( सानंद वर्मा) ने अच्छी डॉक्टरी ( डॉक्टर झुनझुनवाला) दिखाई। हालांकि उनसे उम्मीद थी कि कहीं न कहीं आई लाइक इट बोल दें। अलका अमीन, ऊषा नंदकरनी, सुनीता राजवार, भगवान तिवारी और ओमकार दास मानिकपुरी ऐसे नाम है जो खुद अभिनय की पाठशाला से कम नहीं। डायलॉग बहुत अच्छे और चुटीले हैं। बानगी देखिए,
* कुंडली तो सास बहू की मिलानी चाहिए, हम मर्द तो एडजेस्ट कर ही लेते हैं।
* पतियों को बोलना नहीं धमकाना पड़ता है।
* कभी कभी मेडिकल काम नहीं आए तो मेरिकल काम आता है
बीजीएम और उसकी थीम दोनों ठीक हैं। कैमरा वर्क और तमाम टेक्निकल पार्ट अच्छे हैं।
डायरेक्शन और स्क्रीन प्ले
ले चलहू अपन दुवारी जिसने भी देखी वह मृत्युंजय के पेटर्न को समझता होगा। वे धीमे ढंग से कहानी कहते हैं, दरअसल यही उनकी यूएसपी भी है। उसी के मुताबिक उनका स्क्रीन प्ले होता है।
कमियां
फिल्म मां कर्मा पर बेस्ड है लेकिन भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी खिलाने वाले प्रसंग का उल्लेख नहीं किया गया है। जबकि यह बहुत जरूरी था। इसी चमत्कार से मां कर्मा को सार्वभौमिक पहचान मिली थी। मेकर्स से बड़ी चूक हुई है।
रेटिंग 3/5