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जवानी का मतलब यौवन नहीं युवा है : गंगासागर

पवित्र रिश्ता, कुमकुम भाग्य जैसे टीवी सीरियल लिख चुके हैं जवानी जिंदाबाद के डायरेक्टर

सिनेमा 36. जब हम किसी व्यक्ति के रचनात्मकता पर जाएं तो हमें टाइम मशीन से पीछे जाना पड़ता है। गंगा सागर पंडा भी इन्हीं में से एक हैं। फिल्मों की कहानी लिखना उनके लिए कोई संयोग नहीं क्योंकि इसका अंकुर तो उस वक्त फूट चुका जब वे दसवीं में थे। कहानी और कविताएं लिखा करते थे। बाल मन में फिल्म देखने का शौक भी छिपा था, लेकिन वे उन बातों पर भी गौर करते थे जिसे आमतौर पर इग्नोर कर दिया जाता है। मसलन फिल्म के लेखक और गीतकार वगेरह। बस यही शौक उन्हें फिल्मों के करीब लाता गया। 23 अगस्त को गंगा सागर पंडा कृत ” जवानी जिंदाबाद” रायपुर के श्याम सिनेमा सहित प्रदेशभर में रिलीज हो रही है। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।

रायगढ़ से मुंबई तक का सफर कैसे शुरू हुआ?

देखिए ऐसा है कि जहां चाह, वहां राह। गूगल के सहारे या परिचय के माध्यम से प्रोडक्शन हाउस के ईमेल ऐड्रेस और स्थाई पते खोजा करता था। संपर्क होने पर कहानी लेकर जाता था। जाना नहीं हो पाए तो मेल पर भेजता था। यह सिलसिला कुछ साल तक लगातार चलता रहा लेकिन हासिल आई शून्य जैसा मामला था। फिर अचानक एक दिन मेरी मुलाकात संजीव सिंहजी से हुई। वे बालाजी में काम करते थे। उनके माध्यम से मुझे कुछ लिखने का मौका मिला। लेखक के तौर पर मैं “पवित्र रिश्ता” , “कुमकुम भाग्य” जैसे टीवी सीरियल की राइटिंग टीम का हिस्सा रहा।

छत्तीसगढ़ का रुख कैसे किया?

मैं छत्तीसगढ़ से ही हूं, तो अपनी बोली और भाषा के प्रति एक झुकाव होता ही है। मैं बचपन से ही सतीश जैन सर को अनुसरण करता रहा हूं। उन्होंने भी बॉलीवुड से आकर सिने 36 में अपना सिक्का जमाया। बस मै भी उनके नक़्शे कदम पर चल पड़ा। नतीजतन “वैदेही” बनकर आप सब के सामने आई। हालांकि बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखा पाई लेकिन तारीफ बहुत हुई। खासकर उसके संवादों के। वैदेही बनाने के बाद एक बात तो समझ में आ गई कि यहां एंटरटेनमेंट वैल्यू ज्यादा है। इसलिए इमोशन और संदेश के साथ-साथ मनोरंजन का डोज भी हाई होना चाहिए।

हमने सुना है कि जवानी जिंदाबाद के संवादों में डबल मीनिंग बहुत है?

अगर आप टाइटल को देखते हुए यह सोच रहे हैं हैं जवानी जिंदाबाद डबल मीनिंग है तो आपको यह बता दूं, कि यहां जवानी मतलब युवा है  यौवन नहीं। यूथ से जुड़ी हुई कहानी है। इसलिए टाइटल जवानी जिंदाबाद है। आज के युवावस्था और शिक्षा को लेकर गढ़ी गई कहानी है।

अगर इस फिल्म के निर्माण में चुनौती की बात करें तो?

चुनौती की बात करें तो नए पुराने मिलाकर स्टार कास्ट की संख्या बहुत है। कहानी और बड़ी बंख्या में पात्रों का सामंजस्य रखना अपने आप में एक चुनौती थी। मगर टीम के सपोर्ट से पूरी फिल्म बड़ी आसानी से 23 दिन में कंप्लीट हो गई।Σ

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