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गंगा जमुनी तहजीब का चितेरा अलीम बंशी

ईद की मिठास और होली के रंगों की उजास

Cinema 36. देश में क्या कुछ मुद्दे उछाले जा रहे हैं, और वो मुद्दे मुल्क को किस राह पर लेकर जाएंगे इसे वक्त की पतवार पर छोड़ना ही सही है, लेकिन हमारी इंडस्ट्री में एक ऐसा चितेरा है जिसने गंगा जमुनी तहजीब का उदाहरण है। नाम है अलीम बंशी। सिने 36 के कई कलाकार अलीम के आमंत्रण उनके घर पहुंचे और ईद की सेवई का स्वाद चखा। वैसे इंतजाम तो बहुत अच्छे थे लेकिन उससे कहीं बड़ी बात होती है किसी के बुलावे पर लोगों का पहुंचना।

अलीम बंशी ने जिस शिद्दत से ईद में पुरखुलुस अंदाज में लोगों से मेल मिलाप किया, वैसे ही होली के रंगों में भी रंगे नजर आए। ये रंग सिर्फ होली के ही नहीं थे, इसमें अपनाइयत की महक थी। इंसानियत की परत थी। जिन्होंने भी रंग लगाए उनके दिलों में मोहब्बत थी।

नई पीढ़ी को बताना जरूरी है कि अलीम बंशी वैसे तो कारोबारी हैं। कागज को आकार देने का काम करते हैं लेकिन इन्हें आकार दिया है हबीब तनवीर के रंगमंच ने। छत्तीसगढ़ी संस्कृति की अच्छी खासी समझ है। इनके प्रोडक्शन में तीन फिल्में बन चुकी हैं जिसमें से एक है बंशी। फिल्म निर्माण के समय लोग इनका बंशी बंशी कहकर मजाक उड़ाया करते थे, उसी मजाक को इन्होंने पहचान बना ली। उन्हें फिल्म मेकिंग के समय काफी कुछ सुनना पड़ा था। पागल कहना तो आम बात हो गई थी। फिल्म निर्माण के फैसले पर घर वालों का भी कोई सपोर्ट नहीं था। एक दौर वो भी आया जब इनका घर निकाला भी हुआ लेकिन मां ने साथ दिया। आज अलीम ऐसे खुशमिजाज चेहरे हैं जिनसे मिलकर हर कोई मुस्कुरा उठता है।

जिगर मुरादाबादी के इस शेर से अलीम बंशी का व्यक्तित्व झलकता है: उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे…!

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