छत्तीसगढ़ी फिल्मों में ऐसा रीटेक किसी ने नहीं दिया,बोले तो “अब तक छप्पन”
रात दो बजे तक चली थी शूटिंग, फिल्म थी मया
सिनेमा 36. फिल्मों में रीटेक यानी किसी सीन को दोबारा तीबारा शूट करना। दरअसल, ये बहुत कॉमन है। आमतौर पर डायरेक्टर के हिसाब से सीन या अभिनय न होने पर रीटेक कराया जाता है। कई बार एक्टर खुद रीटेक चाहता है ताकि बढ़िया परफार्म कर सके। आज हम आपको सिने 36 का एक ऐसा किस्सा या कहें सच्चाई से रूबरू कराने जा रहे हैं जो धैर्य और जीवटता की मिसाल है। ये प्रसंग आज के कलाकारों के लिए भी जरूरी है।
बात उन दिनों की है जब सतीश जैन मया का निर्देशन कर रहे थे। उसमें एक सीन था जिसमें पुष्पेंद्र सिंह, प्रदीप शर्मा, मनमोहन सिंह ठाकुर और अनुज शर्मा के बीच बातचीत थी। पुष्पेंद्र सिंह ने इस सीन के लिए 55 टेक लिए और 56 में सीन पूरा हुआ आप चाहें तो यूट्यूब पर इसे देख सकते हैं। दो घंटा दस मिनट के आसपास यह सीन दिखाई देगा।
क्या कहते हैं सतीश जैन
जनवरी की ठंड थी। शूटिंग रात दो बजे तक चली। न पुष्पेंद्र टूटा और न मैंने कोई समझौता किया। मुझे बीपी की प्रॉब्लम थी बावजूद मैंने पेशेंस के साथ शूट जारी रखा।
मेरी हालत ठीक नहीं थी, सभी के सपोर्ट से कर पाया था सीन
56 टेक वाले पुष्पेंद्र सिंह ने बताया, मुझे कुछ हैल्थ इशूज थे। यूरिन करने में आधा घंटा लग जाता था। पूरे पेट में जलन होती थी। उस फिल्म में आशीष शेंदरे थे, वे कर नहीं पाए तो सतीश भैया ने मुझे काम दिया। उस फिल्म को करते करते मेरी बहुत बुरी हालत थी। ऑपरेशन की कगार में था और इस फिल्म को करना भी जरूरी था। शूट के दौरान मैंने अपनी परेशानी सतीश भैया को नहीं बताई लेकिन अनुज शर्मा और प्रकाश अवस्थी से साझा किया था। आप जिस सीन की बात कर रहे हैं उसे शुरू होने में रात के लगभग 12 बज गए थे और मुझे रात साढ़े दस बजे से यूरिन नहीं हो रही थी। सतीश भैया ने कहा कि तू कंफर्ट है तो कर नहीं तो कल फिल्माएंगे। मैंने कहा कर लूंगा। संवाद कहते वक्त पेट के एक हिस्से में अजीब सी जलन होने लगती थी और मैं संवाद भूल सा जाता था। लगभग 30 टेक के बाद सतीश भैया ने मुझसे कहा कि इसे कल कर लेंगे। मैंने कहा कि आज ही यह सीन निपटाएंगे बस थोड़ा सा मेरा साथ दे दो। अनुज शर्मा ने मेरा मनोबल बढ़ाया कि नहीं हो पा रहा हो तो मत करो, कुछ सेकंड बाद अनुज ने फिर से कहा कि आप कर सकते हो, कर डालो। मेरी बहुत बुरी हालत थी। मेरे जीवन दाता डॉक्टर अजय सहाय शूटिंग के दौरान रायपुर से बालोद जाकर इंजेक्शन के जरिए यूरिन ब्लडर से यूरिन निकाला करते थे। जब 55 टेक हो गए तो किसी को नहीं लग रहा था कि यह सीन हो पाएगा। लेकिन पता नहीं सतीश भैया को क्या लगा, कहने लगे मेरे शेर यह फाइनल टेक है और तू करके देगा। अनुज ने मेरे हाथ में हाथ रखकर हौसला बढ़ाया और मनमोहन ने भी कहा कि भैया आप कर लोगे। जब 56वां टेक हुआ तो सतीश भैया ने आकर सीधे गले लगाया और बोले हो गया बेटा। मुझे जो चाहिए था मिल गया।
सतीश भैया से सीखने वाली एक बात यह भी है कि जो व्यक्ति सब्र रखते हुए अपनी पसंद की चीज लेने में एक हद तक जा सकता है वो अपने कलाकारों को उतना कंफर्ट भी रखता है। साथी कलाकार अगर मुश्किल में हैं तो उसे हौसला देते हैं। अनुज भाई, प्रकाश अवस्थी और सलीम अंसारी ने मुझे काफी सपोर्ट किया। सबसे ज्यादा आभारी मैं डॉक्टर अजय सहाय का हूं। देर रात शूटिंग खत्म हुई और सुबह छह बजे वापसी से पहले ही डॉक्टर साहब ने पूरा बंदोबस्त कर दिया था हॉस्पिटल में भर्ती होने का। फैमिली को भी उन्होंने इन्फॉर्म कर दिया था।
मेरा मानना है कि मैं अगर आपने काम के प्रति डेडीकेटेड नहीं रहूंगा तो मुझमें और उन नौसिखियों में क्या फर्क रह जाएगा। हर व्यक्ति को कहीं न कहीं अपने काम के प्रति दृढ़ता के साथ खड़े रहना चाहिए। डायरेक्टर का सपोर्ट करना चाहिए। प्रोड्यूसर का पैसा लगा होता है। पूरी यूनिट रहती है। सबको एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। काम करने वालों को यह पता होना चाहिए कि यदि मैं 56 टेक के बाद पहले टेक से 56 गुना अच्छा कर रहा हूं तो कोई और भी आर्टिस्ट हो वो भी 56 टेक ले लेकिन पहले से 56 तक शॉट में हर शॉट वेरायटी और एक कदम आगे बढ़कर बताए। 56 क्या 100 रीटेक ले। मैं अक्सर अपनी फिल्मों में रीटेक लेते रहता हूं। उसका कारण यह रहता है कि पिछले टेक से बेहतर करूं।