सिनेमा 36. दीपक कुमार अभिनीत और निर्मित माई का लाल रूद्र 10 मई को श्याम में रिलीज को तैयार है। हमने दीपक से पूछा कि आजकल नए चेहरे नहीं चल रहे हैं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं। दीपक ने कहा कि हां इस बात पर संशय लाजिमी है। न सिर्फ सीजी बल्कि हिंदी सिनेमा में भी डायरेक्टर और प्रोड्यूसर नए चेहरे पर रिस्क नहीं लेना चाहते। वे सेफ गेम खेलना चाहते हैं। लेकिन ऐसे में तो कोई नया चेहरा आ नहीं पाएगा। कब तक कोई वेट करेगा। कुछ न कुछ नया तो करना है। मेरा मानना है कि अच्छी कहानी हो, अच्छी स्क्रिप्ट हो और अच्छा डायरेक्शन हो तो फिल्म जरूर चलेगी।
हमारी फिल्म में नए चेहरे वाली कोई बात नहीं आएगी। अच्छी एक्टिंग हो, अच्छी डायलॉग डिलीवरी हो तो फिल्म को अच्छा रिस्पांस मिलता है। किसी न किसी को आगे तो आना ही पड़ेगा। अब हमने तो अपना काम कर दिया है, बाकी जनता ही असली परीक्षक है। जरूर प्यार देगी हमें।
सिनेमाघर बदलने से मेहनत, समय और पैसा जाता है
क्या ऐन वक्त में सिनेमाघर बदलने से मेकर्स को नुकसान होता है? इस पर दीपक ने कहा, हां थिएटर बदलने से नुकसान होता है। समय, पैसा और मेहनत जाती है। लोगों में पब्लिसिटी हो जाती है, वो भी एक तरह का नुकसान ही है। लेकिन ये फिल्म लाइन है और ऐसा होते रहता है तो मेकर्स को उसका सामना करना ही पड़ता है। हालांकि इससे फिल्म भी हल्के से डैमेज हो सकती है। लेकिन इट्स पार्ट्स ऑफ गेम। कोई दिक्कत नहीं। उसका सामना करते हैं। हमारी फिल्म के पोस्टर नहीं छपे थे। कुछ फ्लेक्स हमने बनवा लिए थे। ये कोई कंट्रोवर्सी नहीं है। ऐसा हो जाता है। बस यही तकलीफ होती है कि हमको मेहनत करनी पड़ती है और पैसे भी लग जाते हैं। कोई और फिल्म होल्ड ओवर से ऊपर चल रही है इसलिए ये नौबत आई होगी।