MCB 2: भाइयों का प्यार और राजनीति पर प्रहार
ड्रीम प्रोजेक्ट में मिली सफलता, फिर चल पड़ा सतीश जैन सिक्का
सिनेमा 36. सतीश जैन ने अपने प्रोडक्शन हाउस में मोर छैयां भुईयां 2 का निर्देशन किया है। यह तीसरा मौका है जब उन्होंने निर्माण की जिम्मेदारी ली। इससे पहले साल 2000 में मोर छैयां भुईयां और उसके बाद झन भूलो मां बाप ला के प्रोड्यूसर रहे। मोर छैयां भुईयां 2 में उनका सिक्का चल गया। इस फिल्म में अमलेश नागेश को एप्रोच किया गया था लेकिन मेहनताना को लेकर बात नहीं जमी। अमलेश के न कहने पर दीपक की एंट्री हुई और उनकी किस्मत भी चमक गई।
कहानी
कहानी वही है जो mcb 1 की थी। कुछ बातों को नए तरीके से दिखाया गया है। दो भाइयों के प्रेम पर आधारित ये कहानी मसाले पर मजबूती से टिकी हुई है। जिसकी नीव सतीश जैन हैं। किसन (मनोज) को उनके पिता सुरेश गोंडाले पुलिस में नौकरी कराना चाहते हैं लेकिन किसन गांव में रहकर खेती करना चाहता है। किसी तरह वे किसन को मना लेते हैं और उसकी नियुक्ति हवलदार के तौर पर शहर में हो जाती है। किसन दोनों बच्चों उदय और कार्तिक को लेकर शहर चला जाता है। उदय आगे चलकर कलेक्टर बनता है और कार्तिक मंत्री। फिल्म के जरिए राजनीति पर प्रहार किया गया है कि कैसे अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग सत्ता का हिस्सा बनते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
निर्देशन/ स्क्रीनप्ले/डायलॉग/सिनेमेटोग्राफी/ एडिटिंग
निर्देशन फिल्म का मजबूत पक्ष है। बहुत ही संयमित भाव से निर्देशन किया गया है।सतीश जैन को स्क्रीनप्ले में मास्टरी है। चाहे कुछ हो जाए, कसावट ऐसी की हवा भी न जा पाए। डायलॉग की बात करें तो सारे तालियों वाले संवाद दीपक के खाते में गए हैं। ओवरऑल डायलॉग अच्छे हैं। सिद्धार्थ की सिनेमेटोग्राफी नपीतुली है। तुलेंद्र पटेल ने एडिटिंग में कोई कमी नहीं छोड़ी है।
गीत संगीत/ बीजीएम/ लोकेशन
फिल्म की जान गीत संगीत हैं। सभी गाने अच्छे हैं। टूरी आईसक्रीम खाके फरार होगे… दर्शकों के कदम थिरकेंगे, तोर अचरा… धड़कन में बस जाएगा। टाइटल सॉन्ग तो इमोशन का दूसरा नाम है। बीजीएम करने वाले ने भी अपना काम ईमानदारी से किया है। फिल्म में जितने बंगले दिख रहे हैं उसे लाइन प्रोड्यूसर सुनील साहू ने अरेंज किया है। जो की रियलिटी के करीब हैं।
अदाकारी
मन कुरैशी ने उदय के किरदार में बहुत अच्छे ढंग से ढाला है। अदायगी में उनका कोई सानी नहीं है। कार्तिक के रूप में दीपक एक शाइनिंग स्टार बनके उभरे हैं। तड़कती भड़कती डॉली (एल्शा) और सादगी से भरी दीक्षा ने भी बहुत अच्छा काम किया है। अन्य कलाकारों ने भी अपनी जिम्मेदारी न्यायपूर्वक निभाई है।
क्यों देखें
पहली बात तो सतीश जैन की फिल्म है। एंटरटेन मूवी है। सेंसर ने यू सर्टिफिकेट दिया है। यानी टोटल फैमिली फिल्म। गीत संगीत, ग्लैमर और सबसे बड़ी बात सीजी की पहली रंगीन फिल्म का नए अंदाज में प्रदर्शन।
कमियां
कार्तिक का रोल कॉलेज तक तो बहुत अच्छा रहा लेकिन पॉलिटिकल में थोड़े कमजोर रहे। इतनी कम उम्र में कार्तिक का pwd मंत्री बन जाना, डायरेक्ट मंत्री से लेनदेन की बात करना, कुछ घटनाक्रम अप्रत्याशित हो जाना, इतनी बड़ी रकम का इधर से उधर हो जाना। मंत्री रहते हुए प्रेमिका को गोद में उठाना, ये चीजें थोड़ी ऑड महसूस होती हैं। हालांकि इसमें कुछ चीजें परिस्थितिजन्य मानी जा सकती है। दूसरी बात, वे लोग जिन्होंने mcb1 देखी है, यदि वे उस फिल्म के औरे को साथ लाएंगे तो हो सकता है उन्हें निराशा मिले। क्योंकि उस मूवी की अपेक्षा गांव से जुड़ाव वाली बात, सेंटीमेंट और इमोशन में कमी है। क्लाइमेक्स बिल्कुल प्लेन है। बहुत कुछ देने के चक्कर में कुछ कुछ रह सा गया लगता है। शायद यही वजह है कि जैन ने कुछ इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें डर है कि लोग पहली mcb से तुलना न कर बैठें। ये सही है कि mcb 1 से इसका मुकाबला नहीं किया जा सकता। रमेश सिप्पी ने एक ही शोले बनाई थी।
रेटिंग 4.5/5