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का इही का कइथे मया को नहीं मिल पाई दर्शकों की मया

अच्छी कहानी में जल्दबाजी, किरदार के डेवलेपमेंट में कमजोरी

सिनेमा36. 15 अगस्त को रिलीज हुई छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘का इही ला कइथे मया’ रिलीज हुई। फिल्म के प्रति दर्शकों ने मया नहीं दिखाई। यही वजह है कि ओपनिंग ढंग की नहीं लगी। वैसे मन कुरैशी अब उन हीरो की फेहरिस्त में शामिल हो चुके हैं जो ओपनिंग दिलाने में पीछे रहते हैं। सतीश जैन की ‘एमसीबी 2’ के पहले ‘बीए फाइनल ईयर’ अच्छी होते हुए भी ओपनिंग में फेल रही। ‘एमसीबी 2’ के हीरो तो खुद सतीश जैन थे, इस कड़वे सच को हर किसी को मानना होगा।

खैर, आज बात करेंगे ‘का इही ला…’ की। फिल्म की कहानी कुछ ऐसी है कि मन की बहन की शादी जहां होती है, उस घर की बेटी इशिका यादव से उसे प्रेम हो जाता है। आपको ‘हम आपके कौन’ या ‘नदिया के पार’ वाली फीलिंग आने लगती है। जब मन की फैमिली इशिका के घर शादी की बात करती है तो सब राजी हो जाते हैं लेकिन इशिका इनकार कर देती है और यहीं से कहानी में ट्विस्ट आ जाता है।

मध्यांतर के बाद पता चलता है कि इशिका यानी मधु तो मन से खेल रही थी। वजह थी मन ने उसके दोस्त की पिटाई कर दी थी। वो भी तब जब मन की बहन शादी हो रही थी। अब मन आर्मी मैन बन गया है। देश के लिए लड़ाई में गया है। एक जंग चल रही है। क्या मन जंग में बच पाता है, क्या मधु को अपने किए में पछतावा होता है। क्या दोनों फिर से मिल पाएंगे। इसके लिए आपको फिल्म का रुख करना चाहिए।

डेवलेपमेंट में कमी

जिस तरह ‘मोर बाई हाई फाई’ में सीन और किरदार को डेवेलपमेंट पर गलती की गई थी, वही चीज इसमें भी दिखाई दे रही है। हीरोइन का बोलना और मन का आर्मी ने चले जाना बहुत जल्दबाजी में हुआ। आधी फिल्म तक हीरोइन प्यार का नाटक ही करती रह जाती है। जंग का सीन बजट के अभाव में बचकाना सा लगता है।

नितिन दुबे का गीत संगीत अच्छा है, लेकिन शायद दर्शकों को इसमें कोई करंट महसूस नहीं हुआ। जबकि दो गाने तो मिलियन क्लब में शामिल हो चुके हैं। अभिनय की बात करें सबने अच्छा काम किया है। इशिका अच्छी दिखी हैं। सलीम अंसारी और उपासना वैष्णव की कॉमेडी बढ़िया रची गई है। देवदास और पारो का कांसेप्ट अच्छा है। हेमलाल और शालिनी भी हंसाने में सफल रहे।

मसाला फिल्म

फिल्म एक फिल्म की तरह बनी है। सारा मसाला डाला गया है। देशभक्ति का पुट भी दिखाई देता है। गाने सुनने देखने में अच्छे लगते हैं, हालांकि धुन कहीं से प्रेरित लगती है। उत्तम तिवारी का काम अच्छा है। सिंगल स्क्रीन में फर्स्ट हाफ तक फिल्म हल्की सी धुंधली दिखी, साउंड में कमी महसूस हुई।

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