क्रिकेट में खेल भावना और सिनेमा में अच्छी भावना का होना जरूरी
सीआईपीएल पर त्वरित टिप्पणी
Cinema 36. नवतपा चल रहा है। प्रभात की जेनी (डॉगी) हो या हमारे मोहल्ले की बछिया पाखी । हर कोई सुरक्षित स्थान में टाइम बिताना चाह रहा है। ऐसे में हमारे काबिल कलाकर wrs कॉलोनी में भारी तपिश में क्रिकेट खेलकर साहसिक रोमांच ला रहे हैं।
ये बहुत ही अच्छी पहल है। ऐसा कहा जाता है कि गणेश उत्सव की शुरुआत 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में की थी। हम अंग्रेजों के गुलाम थे और तिलक जी ने एकता और राष्ट्र भक्ति का भाव जागृत करने के लिए इसकी शुरुआत की थी। आज हम पूरी तरह से आजाद हैं लेकिन फिल्म से जुड़े लोगों में एकता का भाव नहीं है। सीआईपीएल से निसंदेह कलाकारों में एकता का भाव जागा है।
कल मुझे wrs कॉलोनी जाने का मौका मिला। मैंने एक मैच में देखा कि कुछ खिलाड़ी एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी रिएक्ट कर रहे थे। हर बॉल पर बेवजह के कॉमेंट पास कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों इनमें खेल भावना जैसी कोई चीज ही नहीं है।
क्रिकेट की बात तो दूर मैंने तो सिनेमा मेकिंग में भी ऐसे कॉमेंट सुने हैं। अभी हंडा का एक गाना बहुत वायरल हुआ। कुछ को लग रहा कि इसे हिट कराने में खूब खर्च किया गया है। अगर सिर्फ पैसों से ही गाने इतनी हिट होने लगे तो हमारे यहां पैसे वाले तो बहुत हैं। उनके तो सभी गाने हिट हो जाने चाहिए। Mcb 2 की तारीफ क्या कर दी, पांच लोगों ने मुझे ही घेरे में ले लिया। कहने लगे असली रिव्यू बताओ। फिल्म में तो कुछ नहीं है। ये क्या बात हुई। और भी उदाहरण हैं लेकिन इतना काफी है मौजूं को समझाने के लिए।
कहने का अर्थ यह कि हर जगह हमारी भावना बुरी क्यों होती जा रही है? हम क्यों पूर्वाग्रह से ग्रसित होते जा रहे हैं। खेल है। एन्जॉय करना चाहिए। वैसे भी इसे प्रोफेशनल या कॉमर्शियल मकसद से शुरू किया ही नहीं गया है। ऐसे में प्रोफ्रशनल प्लेयर्स की उम्मीद क्यों करना। जिसकी जैसी क्षमता, वैसा उसका प्रदर्शन।
नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। टिप्पणी से उसका कोई लेना देना नहीं है।