अब वक्त आ गया है कि उत्तम तिवारी निर्देशन से विराम लें?
तोर संग मया लागे में न्यूनतम साबित हुए उत्तम?

रायपुर.छत्तीसगढ़ी सिनेमा के निर्देशक उत्तम तिवारी को एक सादा, मेहनती और सहज व्यक्तित्व के तौर पर जाना जाता है। लेकिन क्या सिर्फ एक अच्छा इंसान होना एक अच्छे निर्देशक होने की गारंटी है? शायद नहीं। उनकी शुरुआती फिल्में मितान 420, राजा छत्तीसगढ़िया और आई लव यू भले ही अच्छी चली हों, लेकिन बीते कुछ वर्षों में उनका निर्देशन लगातार कमजोर होता गया है। ऐसा बॉक्स ऑफिस कलेक्शन कह रहे हैं।
हालिया रिलीज तोर संग मया लागे को दर्शकों ने सिरे से नकार दिया। दो दिन के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन इशारा कर रहे हैं कि न कहानी में दम है, न प्रस्तुति में नवीनता। और यह कोई पहली बार नहीं हुआ। लगातार कई फिल्में या तो फ्लॉप रही हैं या बॉक्स ऑफिस पर कोई हलचल नहीं मचा सकीं।
तो क्या उन्हें निर्देशन छोड़ देना चाहिए?
यह सवाल भावनात्मक नहीं, व्यावसायिक और रचनात्मक दृष्टिकोण से पूछा जाना चाहिए। हर फिल्म में वही फॉर्मूला, कमजोर पटकथा दर्शकों के सब्र की परीक्षा बन चुके हैं। आलोचकों का कहना है कि अगर कोई अच्छा इंसान है तो क्या उसे पायलट बना दिया जाए? यह तंज सीधे उनके काम पर है और कड़वी सच्चाई यह है कि केवल अच्छा होना, सिनेमा के लिए काफी नहीं होता। एक निर्देशक को बदलते दर्शक, तकनीक और विषयों की गहराई को समझना होता है जो उत्तम तिवारी की हालिया फिल्मों में नदारद है।
अब 25 जुलाई को उनकी अगली फिल्म जीतू के दुल्हनिया रिलीज हो रही है। इसमें शालिनी विश्वकर्मा और जीतू दुलरवा जैसे चर्चित चेहरे हैं। देखने वाली बात यह होगी कि जिस सोन के नथनी एल्बम को 117 मिलियन व्यू यूट्यूब पर मिले हैं उन चेहरों को पर्दे पर देखने कितने लोग आते हैं।
उत्तम तिवारी को आत्ममंथन करना चाहिए
क्या वे खुद को दोहरा रहे हैं? क्या उनकी कहानियों में अब नया कुछ बचा है? अगर नहीं तो उन्हें या तो अपनी टीम में नई सोच लानी चाहिए या कुछ समय के लिए रचनात्मक ब्रेक लेकर खुद को नए सिरे से खोजना चाहिए। क्योंकि फिल्में अब सिर्फ भावनाओं से नहीं चलतीं उन्हें विचार, गति और सटीक क्राफ्ट की जरूरत होती है।