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सीट बेल्ट बांध लीजिए, मोर छैयां भुईयां 3 रफ्तार पकड़ चुकी है!

एंटरटेनमेंट का डबल डोज: एक्शन, इमोशन और ड्रामा का जंक्शन

रेटिंग 4.5/5

सिनेमा 36. हेडिंग में सीट बेल्ट की बात यूं ही नहीं लिखी गई क्योंकि फिल्म की स्पीड सच में सुपर फास्ट है। निर्देशक सतीश जैन ने मोर छैयां भुईयां 3 को जिस तरह लिखा, उससे कहीं बेहतर उसे पर्दे पर उतारा है। फिल्म में स्पीड का मनोविज्ञान ऐसा है कि दर्शकों को झोल समझ ही नहीं आता। ट्रेलर में बहुत कुछ दिखाना भी उनकी एक रणनीति थी, साफ संकेत कि यह वाकई आगे की कहानी है।

कहानी वहीं से शुरू, जहां पार्ट 2 खत्म हुई थी

साहू परिवार सुख-शांति से जीवन जी रहा है। कार्तिक और उदय के बच्चे भी हो चुके हैं। तभी रिश्तेदार से दुश्मन बन चुका धर्मेंद्र चौबे सरपंच चुनाव जीतकर कार्तिक के परिवार से बदला लेना चाहता है। टकराव होता है, जेल तक बात पहुंचती है।

फिर आता है वह ‘थप्पड़’ जो विधायक बने नितिन ग्वाला को परिवार की बहु (एल्सा) की ओर से सरेआम पड़ता है। यही थप्पड़ कहानी को बदल देता है। बदले की आग में कई चिताएं जलती हैं। दादी अपने पोतों राम और लखन को लेकर गांव से भागती हैं। यहीं से इन दोनों की यात्रा क्लाइमेक्स तक जाती है।

निर्देशन, स्क्रीनप्ले और संवाद

थिएटर कलाकार का, टीवी लेखक का और फिल्म निर्देशक का माध्यम होता है। और यह फिल्म हर फ्रेम में सतीश जैन की पकड़ दिखाती है। स्क्रीनप्ले कसावट भरा है।फिल्म एक सांस में खत्म हो जाती है। संवाद अर्थपूर्ण हैं। जैसे एक कॉलेज सीन में राम (लक्षित) का संवाद—
दुनिया में कोनो लड़की गोरी-काली नई होए अउ न ही बदसूरत। काबर के हर लड़की एक दिन मां बनथे। अउ मां ले खूबसूरत कोनो नई होए।’ यह संवाद तालियों के साथ दिल भी जीत लेता है।

अभिनय: सबने दिया सर्वोत्तम

* अंजली चौहान: इस बार नंबर वन पर। शानदार परफॉर्मेंस।
* लक्षित झांजी: हीरो की तरह चमके।
* इशिका यादव, दीपक, संजय महानंद और सुरेश गोंडाले : जबरदस्त।
* बच्चों ने राम-लखन बनकर मन मोह लिया।
* क्रांति दीक्षित: मोहन के किरदार में क्रूरता की हदें पार कर गए।
* ऋचा दीक्षित: फिल्म में स्टाइलिश दिखीं।
* प्रकाश अवस्थी: इस किरदार के जरिए दमदार वापसी हुई।
* मंत्री नितिन ग्वाला, जज अनुपम वर्मा, लखन का दोस्त अंशुल चौबे के अलावा आराधना दुबे, संगीता निषाद, उपासना वैष्णव सभी का काम सराहनीय है।

सिनेमेटोग्राफी, म्यूजिक और एडिटिंग

– सिद्धार्थ सिंह की सिनेमेटोग्राफी हर फ्रेम खूबसूरत।
– सूरज महानंद का बीजीएम सीन को भाव देता है।
– तुलेंद्र की एडिटिंग स्क्रीनप्ले को धार देने वाला काम।

गीत-संगीत: पहले से हिट, आगे सुपरहिट

– सोना जइसे दिल..हर जुबां पर।
– दारू नई चढ़ए…थिएटर टर में थिरकते दर्शक।
– तोला देखे जब साथिया..रोमांटिक
– लाली लुगरा….हिट आइटम।

सभी कमियों पर भारी इसकी स्पीड और निर्देशन

मोर छैयां भुईयां 3 एक परफॉर्मेंस ड्रिवन फिल्म है जो कमर्शियल सिनेमा का नया बैंच मार्क रचती है। तो सीट बेल्ट बांधिए और इस रफ्तार भरी कहानी में बह जाइए लेकिन इसे भी जानिए

* विधायक से मंत्री बने गिरधारी चौहान ( नितिन ग्वाला) की उम्र बरसों बाद भी उतनी ही दिखाई देती है जो जैसी पहले थी।

* दुरूहा चाचा एक बार दिखे, फिर गायब।

* ऋचा दीक्षित मंत्री की बेटी है लेकिन पहनावा उस हिसाब से नहीं लगता सिवाए वकील के ड्रेस में। उम्र में भी वह लखन से बड़ी नजर आई।

* पहले दादी और दीपक और फिर राम का गांव वापसी सफर जरूरत से ज्यादा आसान।

* मंत्री के घर सीधे घुसपैठ और फुटबॉल प्रतियोगियों में मंत्री के मुंह पर “मां का दूध नहीं पीया” जैसे संवाद बोलना हजम नहीं होता, हालांकि इस पर तालियां खूब बजेंगी।

* प्रकाश अवस्थी (डीएसपी/एसपी) का शुरू से ही विधायक के प्रति निगेटिव सोच बायस्ड दिखाती है।

* जब लखन फुटबॉल प्रतियोगिता में मिलता है तब मंत्री को शक नहीं होता कि वो कार्तिक का बेटा है लेकिन सगाई समारोह में डाउट होने लगता है। जबकि यह रिएक्शन पहली मुलाकात में होना था।

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