एथिक्स बदल गए होंगे, पर आशीर्वाद अब भी बना हुआ है— सुनील सोनी
सिनेमा 36 से विशेष बातचीत

सिनेमा 36. संगीत ऐसी विद्या है जिसे बेचा नहीं जाता। ये सीख मुझे 1983 में मेरे गुरु जागेश्वर प्रसाद देवांगन ने दी थी। उन्होंने कहा था, ‘बेटा, कभी घमंड मत करना।’ आज भले समय बदल गया हो, एथिक्स भी बदल गए हों, लेकिन गुरु का आशीर्वाद और माता-पिता का संस्कार आज भी मेरे साथ हैं। जो भी हूं, उन्हीं की बदौलत हूं। यह कहना है जाने-माने संगीतकार और गायक सुनील सोनी का। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के संपादित अंश।
प्रश्न: आज आप नंबर वन सिंगर माने जाते हैं, लेकिन सरकारी आयोजनों में आपका मानदेय कई बार अयोग्य लोगों से भी कम होता है?
जवाब: वे लोग संस्कृति विभाग के मापदंडों के अनुसार ए ग्रेड माने जाते हैं। इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं समझता।
प्रश्न: आप अक्सर कार्यक्रमों में देर से क्यों पहुंचते हैं?
जवाब: कोशिश तो हमेशा रहती है कि समय पर पहुंचूं, पर रायपुर का ट्रैफिक बहुत खराब है। मैं गाड़ी भी धीरे चलाता हूं। कई बार कुछ लोग गाने के लिए आग्रहपूर्वक बुला लेते हैं, मैं मना नहीं कर पाता। जैसे आज ही किसी ने मुझे बुलाया लेकिन जब मैं वहां पहुंचा तो लाइट बंद थी। जाहिर है इसके बाद जिसको टाइम दिया है वहां पहुंचने में समय लगेगा।
प्रश्न: आपने अभी तक अपना यूट्यूब चैनल क्यों नहीं बनाया?
जवाब: सच कहूं तो कभी इस पर गंभीरता से सोचा ही नहीं। लेकिन मेरा मानना है कि जब आप लगातार गा रहे हों और श्रोताओं का प्यार मिल रहा हो, तो खुद के चैनल पर गुणवत्ता बनाए रखना बहुत जरूरी है। लोग तुलना करेंगे — फिल्म के गानों की क्वॉलिटी और एल्बम के गानों की। इसलिए मैं चाहता हूं कि जब कुछ दूं, तो बेस्ट से बेस्ट दूं।
प्रश्न: कहा जाता है कि आप जानबूझकर कम मानदेय लेते हैं ताकि दूसरों को कम मौके मिलें?
जवाब: मैं मानता हूं कि कई बार परिस्थितियां देखकर कम पैसों में गा लेता हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं किसी का हक छीनता हूं। आज सब अपनी जगह अच्छा काम कर रहे हैं।
प्रश्न: क्या आप अपने बेटे को भी संगीत की दुनिया में लाना चाहेंगे?
जवाब: जी हां। मेरा बेटा मानस अभी खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहा है। अब यह नियति तय करेगी कि वह इस क्षेत्र में कितना आगे बढ़ेगा।
प्रश्न: बचपन की कोई याद?।
जवाब: मैं किशोर कुमार का बड़ा प्रशंसक रहा हूं। जब गाने की शुरुआत की, तो ‘दे दे प्यार दे’ गाना आर्केस्ट्रा में गाना चाहता था, लेकिन गुरुजी ने पिताजी से कहा — “इसे कभी आर्केस्ट्रा में मत भेजना।”
बाद में समझ आया कि आर्केस्ट्रा में असली गायकों की आवाज़ की नकल करनी पड़ती है। गुरुजी का आशीर्वाद ही है कि मैं अपनी मौलिक आवाज़ के साथ पहचान बना पाया।
प्रश्न: सतीश जैन के बारे में क्या कहेंगे?
जवाब: मैं हर इंटरव्यू में कहता हूं कि कला के सबसे बड़े पारखी सतीश जैन हैं। जब मैंने ‘झन भुलव मां बाप ला’ के लिए तोला अब्बड मया करथो गाया, तो उन्होंने मेरी कला को तुरंत पहचान लिया। जो व्यक्ति मुझे एक गाना गवाना चाहता था, उसने मुझे दूसरा गाना भी दे दिया — उससे बड़ी खुशी उस वक्त क्या हो सकती थी।