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ए ददा रे…न कॉमेडी न हॉरर, दिखाना क्या चाहते हैं योर ऑनर?

गीत-संगीत ने रखी लाज

इस हफ्ते आनंद मानिकपुरी अभिनीत और निर्देशित ए ददा रे रिलीज हुई। नाम के अनुरूप लोगों को उम्मीद थी कि फिल्म कॉमेडी और हॉरर से भरपूर होगी, लेकिन ऐसा कुछ इसमें नजर नहीं आया। कहानी एक गांव की है जिसमें जितने लोग रहते हैं, वही फिल्म के किरदार भी हैं। गांव में भूत, मटिया, चुड़ैल की आहट मिलती है। जिसे समय-समय पर सभी महसूस करते हैं, सिवाय दर्शकों के। आखिर पता चलता है कि मामला तो कुछ और ही है।

स्क्रीनप्ले, कैमरा, बीजीएम

फिल्म का स्क्रीन प्ले कमजोर है। इतना कि कई बार आपको जम्हाई आ जाए। मालगाड़ी की तर्ज पर फिल्म चल रही होती है लेकिन गीत-संगीत थोड़ी देर के लिए मेट्रो का मजा दे देते हैं। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। बैकग्राउंड म्यूजिक बेकार है, क्योंकि हॉरर मूवी में बीजीएम का रोल महत्त्वपूर्ण होता है।

अभिनय

यूट्यूूबर से अभिनेता बने आनंद का जॉनर कॉमेडी का रहा है। इसलिए वे कॉमेडी बेस्ड मूवी बनाते हैं, लेकिन सिनेमा में कई तरह के भाव प्रस्तुत करने होते हैं, जिसमें आनंद की कोशिश सफल नहीं हो पाती। हेमा शुक्ला की अदाएं अच्छी हैं लेकिन उनका भी जादू नहीं चल पाया। अन्य कलाकारों का काम औसत है। नितेश लहरी ने दो रूप में दिखाई दिए हैं, उनका काम अच्छा है।

गीत-संगीत, डायलॉग

अगर कोई पूछे कि फिल्म का सबसे अच्छा पक्ष क्या है, तो इसका जवाब गीत-संगीत हो सकता है। भले आपके दिलो दिमाग में गीत-संगीत का जादू नहीं चल पाएगा लेकिन देखते समय आप कनेक्ट हो जाते हैं। इसके लिए मोनिका-तोषांत को सराहा जा सकता है। डायलॉग में भी कोई ऐसी बात नहीं जिसके बारे में लिखा जाए। वैसे आनंद के लिए इतनी तारीफ तो बनती है कि उन्होंने अलग करने की कोशिश की और समाज के लिए कुछ मैसेज भी दिया।

रेटिंग 2.5/5

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