Motivational StoryRaipur Voice

नसीरूद्दीन शाह का प्ले कराने की आस रह गई अधूरी

कोई भी काम रास नहीं आया तो थिएटर को ही दे दिया पूरा जीवन

सिनेमा 36. जाने माने रंग निर्देशक जलील रिजवी चल बसे। वे ऐसे नाट्य हस्ताक्षर थे जिनकी फैमिली में नाटक रक्त की मानिंद समाया हुआ था। पत्नी नूतन हो या बेटी सौम्या। नाटक में एक साथ भी दिखाई दिए। रिजवी जब क्लास टेंथ में थे तबसे नाटकों अभिनय करने लगे थे। अपनी जीवन काल में उन्होंने छह नौकरियां की लेकिन किसी भी जॉब के लिए ना आवेदन किया और न इंटरव्यू दिया। कोई भी जॉब उनने लम्बे समय तक नहीं किया। उन्हें अगर कोई विधा रास आई तो वो थी नाटक।

उनकी इच्छा थी कि रायपुर में नसीरुद्दीन शाह का प्ले कराएं। इसके लिए उनने बात भी कर ली थी। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। जब उन्होंने फिल्म निर्देशन शुरू किया तो चार फिल्में डायरेक्ट की। इसमें से दो ही रिलीज हुई। जय मां बम्लेश्वरी और बंशी। एक फिल्म थी गौरी। जिसे प्रेमचंद की कहानी सुभागी को छत्तीसगढ़ी में बनाया गया था। दुर्भाग्य से वो फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। रिजवी चाहते थे कि इसे दोबारा शूट करें। क्योंकि उनके पास स्क्रिप्ट थी। एक और बात थी जो वो चाहते थे लेकिन हो नहीं पाई। उनका सोचना था कि थिएटर की लाइट कोलकाता से लाई जाए। क्योंकि अभी जो लाइट यूज की जाती है वो काम चलाऊ थी।

रिजवी का मानना था कि कलाकार को देश के प्रति भी सोचना चाहिए। सिर्फ मनोरंजन करना ही उसका उद्देश्य नहीं होना चाहिए। रिजवी ने जब जब देश में संकट आया, वे मदद के लिए आगे आए। भारत पाक युद्ध और लातूर के भूकम्प में उन्होंने अपनी टीम के साथ चैरेटी शो किए और प्राप्त राशि को पीड़ितों तक पहुंचाया। जब भोपाल में गैस त्रासदी हुई तो अपने कलाकारों के साथ इन्होंने सड़कों पर जूते तक पॉलिश लिए और उस पैसे को भी पीड़ितों का भिजवाया। रिजवी जी नहीं रहे लेकिन उनकी सीख रंगकर्मियों के लिए हमेशा काम आएगी।

Related Articles

Check Also
Close
Back to top button