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“गांव के जीरो, सहर मा हीरो” में जबर्दस्त एक्शन और ड्रामा

उत्तम तिवारी का नया अंदाज

Cinema 36. उत्तम तिवारी निर्देशित और मनोज राजपूत अभिनीत सीजी फिल्म गांव के जीरो सहर मा हीरो फुल एक्शन मूवी है। गांव का एक युवा परस्थितिजन्य कारणों के चलते शहर आ जाता है। और यहां से उसकी किस्मत ऐसे बदलती है कि सबसे बड़ा बिल्डर बन जाता है। फिल्म कहती है कि टैलेंट के दम पर व्यक्ति मनचाहे मुकाम तक पहुंच सकता है।

कहानी

फिल्म की शुरुआत अदालत के सीन से होती है जहां एक आरोपी पर कोर्ट फैसला सुना रही है। आरोपी अब कैदी के रूप में जेल दाखिल होता है। यहां से कहानी फ्लैश बैक पर चलने लगती है। जेल में बंद कैदी मनोज ( मनोज राजपूत) अपने गांव और बचपन पहुंच जाता है। फिर गांव से शहर और शहर से जेल तक की कहानी बड़े रोमांचक अंदाज में आगे बढ़ती है। मनोज की जिंदगी में तीन लड़कियां आती हैं लेकिन मनोज को गांव की लड़की आरती ( इशिका यादव) प्यार करती है जबकि मनोज नेहा पर फिदा है जो उसे शहर में मिली।

डायरेक्शन/ स्क्रीनप्ले/ डायलॉग/ एक्टिंग

उत्तम तिवारी का डायरेक्शन जितना चुस्त दुरुस्त है उतना ही उन्होंने स्क्रीनप्ले में कसावट लाने की भरसक कोशिश की है। यही वजह है कि फिल्म में आप बोर नहीं होते। संवाद में भी अच्छा काम हुआ है। संवाद में देसी पुट साफ दिखाई देता है जिससे फिल्म को मजबूती मिलती है।

अभिनय की बात करें तो मनोज राजपूत ने खूब मेहनत की है। जब आप फिल्म से कनेक्ट होने लगते हैं तो अभिनेता की एक्टिंग पर ध्यान नहीं जाता और आप फिल्म की धारा के साथ बहने लगते हैं। मनोज के मां बाप का किरदार की एक्टिंग कमाल की है। नेहा और ईशानी का ग्लैमर देखते ही बनता है।

गीत संगीत/ बीजीएम/ सिनेमेटोग्राफी/ डीओपी

गीत संगीत औसत है। आप फिल्म में उसे एंजॉय भी करते हैं। बीजीएम का अच्छा प्रभाव सुनाई पड़ता है। सिनेमेटोग्राफी देखकर लगता है किसी अनुभवी (तोरण राजपूत) डीओपी का काम है। लोकेशन कमाल के हैं। साउंड, फॉली और डीआई का काम मुंबईया लगता है लेकिन इसे रायपुर के ही नीरज वर्मा ( श्रेष्ठ स्टूडियो) ने अंजाम दिया है।

ड्रा बैक

चाहे कैसी भी फिल्म हो कुछ न कुछ ड्रा बैक छोड़ ही जाती है। कहीं कहीं संवाद में थोड़ी और मेहनत की जरूरत महसूस होती है। फिल्म देखते वक्त गाने अच्छे तो लगते हैं लेकिन आप उसे घर लौटते तक याद नहीं रख पाते। मनोज राजपूत का अभिनय कहीं कहीं कमजोर है। हालांकि उनकी मेहनत और ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं दिखाई देती। फिल्म थोड़ी लाउड सी भी लगती है।

क्यों देखें 

एक अलग ही फ्लेवर की फिल्म है जहां आप को फुल क्राउड, नेचर स्पॉट, ब्यूटीफुल फेस, फैंटम कैमरे से शूट किए गए आकर्षक सीन देखने को मिलेंगे। कहीं कॉमेडी पंच तो कहीं इमोशनल टच भी महसूस करेंगे। फिल्म आपको अपने संघर्ष के दौर की याद भी दिलाएगी। कुल मिलाकर एक ऐसा कॉम्बो है जिसे देखकर आपको मजा आ जाएगा।

रेटिंग 3.5/5

 

 

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