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दो बहनों के बीच फंसी मोहब्बत की कहानी, लेकिन दर्शक किससे इश्क करेंगे?

बिना सतीश जैन वाली फिल्म में दीपक साहू

सिनेमा 36. इस हफ्ते रिलीज हुई छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘मैं राजा तैं मोर रानी’ एक प्रेम कहानी है जिसमें रानी और वाणी दो बहनें एक ही लड़के राजा पर दिल हार बैठती हैं। हालांकि राजा की पसंद शुरू से ही रानी होती है, लेकिन क्या दर्शक इस लव ट्रायंगल से जुड़ पाएंगे या नहीं इसका जवाब तो बॉक्स ऑफिस कलेक्शन ही देगा। फिल्म की शुरुआत रायपुर के श्याम सिनेमा से होती है। रानी अपनी सहेलियों के साथ फिल्म देखने जाती है, जहां उसकी एक दोस्त के साथ एक टपोरी किस्म का लड़का (नीरज उइके) बदसलूकी करता है। तभी राजा (दीपक साहू) की एंट्री होती है।

राजा की बहादुरी से रानी प्रभावित हो जाती है और दोनों एक-दूसरे को दिल दे बैठते हैं। इस बीच राजा की मुलाकात वाणी से भी होती है और कहानी एक उलझन में घिर जाती है। वाणी पर भी गुंडे हमला करते हैं, जिन्हें राजा बचाता है। अब वाणी भी राजा के प्यार में पड़ जाती है। कहानी में टकराव तब आता है जब वाणी, रानी और राजा की नजदीकियों से जलने लगती है और उसकी चालें कहानी को मोड़ देती हैं। अंत में देखना दिलचस्प होगा कि राजा किसे चुनता है रानी या वाणी?

🎵 संगीत, टेक्निकल टीम और निर्देशन

गीत-संगीत: उत्तम तिवारी का संगीत कर्णप्रिय है, भले ही वह अपेक्षित लोकप्रियता न बटोर पाया हो।
सिनेमेटोग्राफी: सिद्धार्थ सिंह की सिनेमेटोग्राफी खूबसूरत है। पर्दे पर भी वह एक सीन में नजर आते हैं. राजा को डंडे से मारने वाले वही हैं।
एडिटिंग: श्रेष्ठ वर्मा की यह डेब्यू फिल्म है और उनका काम संतुलित रहा है।
बैकग्राउंड म्यूजिक: सोमदत्त पांडा का बीजीएम औसत है।
निर्देशन: भूपेंद्र चंदनिया ने निर्देशन और स्क्रीनप्ले से कहानी को साधने की कोशिश की है।

अभिनय

अंजली सिंह (मां के किरदार में): बेहद नैचुरल परफॉर्मेंस। अभिनय कम, एहसास ज्यादा।
दीपक साहू (राजा): सधा हुआ अभिनय, एक्शन और रोमांस दोनों में फिट।

एल्सा घोष: रानी और वाणी दोनों में फिट।
रजनीश झांजी (बिल्डर): प्रभावी मौजूदगी।
पुष्पेंद्र सिंह: किरदार में फिट। छतरी पकड़ ली।
क्रांति दीक्षित: छोटा रोल, लेकिन असरदार।
मनोज जोशी (पिता): दमदार अभिनय।

⚠️ कमजोरियां और विसंगतियां
स्क्रीनप्ले में लॉजिक की कमी

राजा बचपन में पिता से पूछता है “राजा बाबू लगी है क्या”, जबकि सामने पोस्टर उसी फिल्म का लगा है।

लोकेशन भ्रम: सीन में बात “सिटी सेंटर” की होती है, लेकिन दिखाया जाता है मैग्नेटो मॉल।
पिता का व्यवहार अव्यावहारिक: कोई भी बाप बार-बार बेटे को जेल भेजने की धमकी नहीं देगा, वो भी बिना किसी गुंडागर्दी के।
जल्दबाजी में प्यार: रानी और राजा का प्यार इतनी तेजी से होता है कि दर्शक उसमें भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाते।

अकेले में भी कान पर मोबाइल: आजकल अकेले होने की स्थिति ने सब स्पीकर ऑन करके बात करते हैं, लेकिन फिल्म में हर कोई फोन कान से ही लगाकर बात करता है। किसी के पास हेडफोन तक नहीं 2025 में भी!

मां और सुबह की चाय: एक सीन में राजा बिस्तर पर बिना मुंह धोए चाय पीता है। छत्तीसगढ़ की कोई मां ऐसा नहीं करेगी।

दोस्तों का किरदार हल्का: राजा के दो दोस्त सिर्फ भौजी-भौजी करते रहते हैं। न किरदार में गहराई है, न ह्यूमर में कसाव।

कुल मिलाकर ‘मैं राजा तैं मोर रानी’ एक सरल प्रेम कहानी है जिसमें मनोरंजन है, लेकिन कुछ जगहों पर लॉजिक और स्क्रिप्टिंग में कमी रह जाती है।
गीत-संगीत और अभिनय फिल्म को संभालते हैं, लेकिन लेखन और निर्देशन थोड़ी और बारीकी मांगते हैं।

सिनेमा 36 रेटिंग 3/5

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